देखें क्या होता हे गिनती का हिसाब राज्यसभा में चुनाव का हिसाब
देखें क्या होता हे गिनती का हिसाब राज्यसभा में चुनाव का हिसाब
चंडीगढ़। राज्यसभा चुनावों के लिए वोटों को Single Transferable Vote सिस्टम से गिना जाता है। 1851 में डेनमार्क में पहली बार इस्तेमाल हुए इस सिस्टम को वोटरों की पसंद जानने के लिए सबसे सटीक माना जाता है। इसमें वोटों की गिनती काफी टेढ़ी होती है। फार्मूला और प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि एक कड़े मुकाबले में नतीजा कब इधर से उधर हो जाए, कह नहीं सकते। खासतौर पर उस वक्त जब कुछ वोट रद्द हो रहे हों।
इस प्रक्रिया में जितनी सीटों पर चुनाव हो रहे हों, मतदाता को मौजूद उम्मीदवारों में से उतनों को ही 1,2,3.. के हिसाब से प्राथमिकता देनी होती है.. मतलब पहली पसंद कौन, दूसरी पसंद कौन आदि, सीटों की संख्या तक। 10 उम्मीदवारों में से 4 सीटें भरी जानी हों तो किन्हीं 4 नामों के आगे 1,2,3 या 4 लिखना होगा। गिनती के वक्त पहली पसंद का वोट तो सीधे उसी उम्मीदवार को दे दिया जाता है फुल वैल्यू के साथ, जबकि दूसरी पसंद वाला वोट तब काम आता है जब आपका पहली पसंद वाला उम्मीदवार जीत चुका हो। इससे पहले जीत के लिए जरूरी कोटा तय किया जाता है जिसके फार्मूला को Droop Formula और इससे निकलने वाले जरूरी कोटा को Droop Quota कहा जाता है। इसे पार करने पर ही जीत होती है। पहली पसंद के वोट के आधार पर जो उम्मीदवार कोटा पार कर जाते हैं, उन्हें विजेता घोषित कर दिया जाता है। साथ ही, कोटे से ऊपर के उनके वोटों को दूसरी या तीसरी पसंद के उम्मीदवारों को ट्रांसफर किया जाता है। इसकी एक प्रक्रिया है और यही सबसे महत्वपूर्ण है।
हरियाणा में पिछले चुनाव में एक विधायक के वोट की वैल्यू 100 अंक रखी गई थी जिसके हिसाब से मौजूदा चुनाव में सभी 90 वोट पड़ने पर जरूरी वोटों का कोटा (9000/3) +1 = 3001 होगा। इसके हिसाब से पहले उम्मीदवार को जीत के लिए 31 विधायकों के वोट चाहिए होंगे। दूसरे जीतने वाले उम्मीदवार के वोटों की संख्या 30 ही काफी होगी।
पेचीदा बात तब है अगर कुछ वोट रद्द होते हैं। मान लीजिए कांग्रेस के 2 वोट रद्द होते हैं तो जरूरी कोटा होगा (8800/3)+1 = 2934, और इस सूरत में पहला उम्मीदवार 30 वोटों में जीत जाएगा। लेकिन उसके खाते में 2934 अंक ही भेजकर उसे विजेता घोषित कर दिया जाएगा। उसे मिले वोटों और उसके हिसाब से बने अंकों में से 2934 को घटाकर बाकी अंक (3100-2934 =166) उस उम्मीदवार के खाते में जोड़ दिए जाएंगे जो उनकी दूसरी पसंद रहा होगा। दूसरे उम्मीदवार की हार-जीत उसे मिले पहले नंबर वाले वोट और ये अंक जोड़कर तय होगी। इस सूरत में कार्तिकेय के पास 2800+166 = 2966 अंक होंगे और वे जीत जाएंगे।
उस सूरत में 29 विधायकों के वोट लेने वाले कांग्रेसी अजय माकन, 28 विधायकों के वोट वाले कार्तिकेय से हार जाएंगे।
कांग्रेस के 3 या अधिक वोट रद्द होने पर भी जीत 28 वोटों वाले कार्तिकेय की होगी।
भाजपा, जजपा या किसी निर्दलीय के वोट रद्द होने पर इसी तरह नई स्थिति की गणना करनी होगी। तब परिणाम उस स्थिति के अनुसार होगा।
इसमें एक और स्तर है गणना का जिसमें जीत चुके उम्मीदवार के फालतू बचे वोटों को दूसरी पसंद जताने वाले मतदाताओं की संख्या से भाग दिया जाता है और फिर उसे Round down कर (दशमलव के बाद का हिस्सा काटकर) एक वोट की वैल्यू निकाली जाती है। इस वैल्यू को दूसरी पसंद के उम्मीदवारों में उनके वोटों (दूसरी पसंद के) के हिसाब से बांट दिया जाता है। इस रूल के हिसाब से दूसरी पसंद वाले वोटों का मूल्य थोड़ा कम हो जाता है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में वह नतीजे पर फर्क नहीं डालेगा।
इसमें तीसरी, चौथी या ज्यादा पसंद होने पर प्रक्रिया और लम्बी व जटिल होती जाती है। इसकी जरूरत उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में पड़ सकती है जहां एक साथ 10-11 सीटों के लिए वोट पड़ते हैं। ऐसे समझ आने के चांस कम ही हैं, अगर आपको समझ नहीं आया तो चिंता ना करें।
Single Transferable Vote का तरीका पेचीदा या गैरजरूरी लग सकता है लेकिन मतदाताओं की राय सबसे अच्छे से जानने का यह वैज्ञानिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त तरीका है। इससे मतदाता को एक से ज्यादा पसंद वरीयता क्रम में बताने का अवसर मिलता है और नतीजों में इस बात को महत्व मिलता है।
प्रक्रिया को काफी हद तक आप हरियाणा के 2016 के राज्यसभा चुनाव परिणाम से समझ सकते हैं जो तस्वीर में दिखाया गया है। हालांकि इसमें इस्तेमाल किए गए फार्मूले में मामूली सी गणितीय चूक है लेकिन उससे परिणाम पर फर्क नहीं पड़ा।